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कोई वादा तो नहीं तुझसे...

कोई वादा तो नहीं तुझसे, 
पर तू आज भी अपना सा है,
क्यों तेरी जुदाई का,
मेरे ग़म से कोई रिश्ता सा है ।

हर शह ज़माने में बदलती है, 
हर नज़र बहकती है,
एक पल का था दीदार, 
और आँखों में तेरा चेहरा सा है ।

महफिलों में गम है तू, 
और अपनों में मसरूर है,
क्या बात है की खामोश है,
क्यों तू तन्हा सा है ।

कभी मरासिम थे हमसे तुम्हारे, 
आज ताल्लुक भी नहीं,
दिल से धड़कन कैसे ये कहे,
की तू मुझसे जुदा सा है ।

सारी खुदाई थी एक तरफ, 
और खुदा तुझको माना था मैंने,
खता की ये की न समझा मैंने, 
तू भी एक इन्सां सा है ।

आज चांदनी खामोश है, 
और चाँद भी कुछ गुमसुम है,
देख ले कायनात में, 
किस कदर मुक़म्मल मेरा ज़ज्बा सा है ।


©ललित साह
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