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असफलता घेरे तुझे मार्ग हो अबरुद्ध.


असफलता घेरे तुझे, मार्ग हो अबरुद्ध,
पास ना हो धन तेरे, और काम हो अपार..,
भाग मत कर प्रयास,
चाहे तू हँस तू किंतु आँखें हो नम,
भाग मत कर प्रयास,
रात ही दिन हैं,निकलेगा फिर सूरज, 
दूर क्षितिज अपार,
भाग मत कर प्रयास,
पीड़ा ही सुख हैं, सुख हैं पीड़ा,
 हार ही जीत हैं,जीत ही हार,
भाग मत कर प्रयास,
कर प्रयास, भाग मत..

लेकिन इजहार से डरती है

पागल सी एक लड़की है
हर पल वो मुझको तकती है
आंख में उसकी मस्ती है
वो बात-बात पर हंसती है
हर रोज वो रूप बदलती है
हर रूप में अच्छी लगती है
इस दिल में आग भड़काती है
जब मेरी तरफ वो बढ़ती है
दीदार को आंख तरस्ती है
फुर्सत में आंख बरसती है
वो जब भी मुझसे मिलती है
ये जालिम दुनिया जलती है
प्यार वो मुझसे करती है
लेकिन इजहार से डरती है...

मज़ा मिलता है उनको दूसरों का दिल दुखाने में (mazza milta hai unko dusare ko dil......)

सता लें हमको, दिलचस्पी जो है उनकी सताने में
हमारा क्या वो हो जाएंगे रुस्वा ख़ुद ज़माने में

लड़ाएगी मेरी तदबीर अब तक़दीर से पंजा
नतीजा चाहे जो कुछ हो मुक़द्दर आज़माने में

जिसे भी देखिए है गर्दिशे हालात से नाला
सुकूने दिल नहीं हासिल किसी को इस ज़माने में

वो गुलचीं हो कि बिजली सबकी आखों में खटकते हैं
यही दो चार तिनके जो हैं मेरे आशियाने में

है कुछ लोगों की ख़सलत नौए इंसां की दिल आज़ारी
मज़ा मिलता है उनको दूसरों का दिल दुखाने में

अजब दस्तूर ए-दुनिया- ये मोहब्बत है,अरे तौबा
कोई रोने में है मश़ग़ूल कोई मुस्कुराने में

पतंगों को जला कर शमए-महफिल सबको ऐ 'बर्क़ी'!
दिखाने के लिए मसरूफ़ है आँसू बहाने में.....

बचपन में.......


कितना आसान लगता था 
ख़्वाब में नए रंग भरना 
आसमाँ मुट्ठी में करना 
ख़ुश्बू से आँगन सजाना 
बरसात में छत पर नहाना 

कितना आसान लगता था

दौड़ कर तितली पकड़ना
हर बात पर ज़िद में झगड़ना
झील में नए गुल खिलाना 
कश्तियों में, पार जाना 

कितना आसान लगता था 

जिन्दगी में पर हक़ीक़त 
ख़्वाब सी बिलकुल नहीं है 
जिन्दगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है

जिन्दगी में पर हक़ीक़त 
ख़्वाब सी बिलकुल नहीं है

पर तुम ही न आये......


जब पूरे चाँद की आधी रात थी 
मैं तुझको बुलाता रहा खुद को रुलाता रहा 
देख तड़प वह मेरी चांदनी छुप गयी 
पर तुम ही न आये .

जब सावन की पहली बरसात थी 
मैं तुझको बुलाता रहा खुद को रुलाता रहा 
देख कर आंसूं वह मेरे बारिश भी रोने लगी 
पर तुम ही न आये .

जब जाड़ों की ठिठुरती भोर थी 
मैं तुझको बुलाता रहा खुद को रुलाता रहा 
देख गम वह मेरा ओस भी पिघलने लगी 
पर तुम ही न आये .

जब गर्मियों की सुरमई शाम थी 
मैं तुझको बुलाता रहा खुद को रुलाता रहा 
देख जलन मेरे दिल की सूरज भी जलने लगा 
पर तुम ही न आये .

संग कोई नहीं था आंसू का सैलाब था 
मैं तुझको बुलाता रहा खुद को रुलाता रहा 
आंसूं बहते रहे जुबां चुप ही रही 
पर तुम ही न आये .

मैं सोचता रहा 
खुद से पूछता रहा 
सवाल कितने किये जवाब एक न मिला 
मैं तुझको बुलाता रहा खुद को रुलाता रहा 
पर तुम ही न आये 
क्या कभी आओगे तुम...?

जिन्दगी की राहों में


जब भी दिल उदास होता है, तेरे पास चला आता हूँ मैं
बहाने से छूकर तेरा हाथ, अपना ही दर्द सहलाता हूँ मैं

बस एक तुम होते हो साथ मेरे, तो तन्हाई साथ नहीं होती
यूँ भीड़ में खुद को कुछ ज्यादा ही तन्हा पाता हूँ मैं

तुम्हारे रंजो-ग़म पर कुछ तो आखिर हक हो मेरा
कि अपने दिल को तेरे दर्द का लिबास पहनाता हूँ मैं

दोस्त, अपने अह्सासे-दर्द से मुझे महरूम न कर
ये वही दर्द है जिससे अपना दिल बहलाता हूँ मैं....!!

तुम्हे पाकर


अधूरापन ख़तम हो जाता है,
तुम्हे पाकर....
दिल का हर तार गुनगुनाता है,
तुम्हे पाकर...
गम जाने किधर जाता है,
तुम्हे पाकर....
सब शिकवे दूर हो जाते है,
तुम्हे पाकर....
जानता हू चंद पलो का खेल है ये..
अफ़सोस नही रहता बाकी,
तुम्हे पाकर..
राह तकती, ये लम्बी पगड़ंड़िया ..
थक कर भी चैन पाती है आंखे,
तुम्हें पाकर..
तमाम मायुसिया छुप जाती है..
जिंदा लाश मानो उठ जाती है,
तुम्हे पाकर..
'तन्हा' मरना जीना सब भूल जाती है,
तुम्हारी बाहों में आकर..
बस तुम्हें पाकर.......
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