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माँ सरस्वती की याद में कुछ लाइन.....
ये घर और गांव का संस्कार ही था कि विद्यार्थी जीवन में हमारे लिए मां सरस्वती से बड़ी कोई देवी नहीं थी। किताब ही नहीं किसी कागज पर भी पैर पड़ जाए तो तुरंत हम उसे प्रणाम करते थे। तब हमारे विद्या कसम से बढ़कर कोई कसम नहीं हुआ करती थी। ये और बात है कि आज विद्या का मतलब विद्या बालन हो गई हैं। हम अपने घरों और स्कूलों में सरस्वती पूजा की तैयारी हफ्ते भर पहले ही शुरू कर देते थे। जहां मां सरस्वती की तस्वीर रखते थे। पूजा के जोश में जनवरी के जाड़े की परवाह नहीं होती और सुबह से ही नहा धोकर पूजा पर बैठ जाते थे क्योंकि घर की पूजा में लेट होने का मतलब था स्कूल जाने में लेट क्योंकि बड़ा आयोजन तो स्कूल में होता था !!!
कोई करे या ना करे
मुझे भी कोई याद कर रही होगी,
अपनी सपनों में सजा रही होगी,कोई करे या ना करे....
वो मेरा इन्तजार ज़रूर कर रही होगी...
©ललित साह
इस दुनिया ने यूँ हमको सताया था
इस दुनिया ने यूँ हमको सताया था,
हर एक मोड पे हम गिरते थे..
किसी ने भी ना हमको उठाया था...
तब तुने ही सनम एक उम्मीद का दिया जलाया था..
अपने हर एक गम को छुपाकर मुझे जीना सिखाया था......!!!
तेरी जुदाई में हर रोज मरता है कोई
याद में तेरी आंखे भरता है कोई..
हर सांश के साथ तुझे याद करता है कोई...मौत ही अैसी चीज़ है जिसको आना ही है,
लेकिन तेरी जुदाई में हर रोज मरता है कोई...!!!
अगर समझ जाते वो समझाने से
अगर समझ जाते वो समझाने से,
मान जाते वो मनाने से...तो क्योँ दिल तनहा होता क्यूं कदम बेहक जाते,
लौट आते अगर वो हर्ष के भुलाने से....
©ललित साह
यकींन पे यकींन दिलाते है दोस्त
राह चलते को बेवखुफ़ बनाते है
दोस्त,
शरबत बताकर दारू पिलाते है
दोस्त,
पर जो कुछ भि हो..
ǝןɐs बहुत याद् आते है
दोस्त..
जब कोई एहमियत ना रही जीने की
जब कोई एहमियत ना रही जीने की,
जब किसी को अफ़सोस ना रहा मेरे मरने का,
फिर क्योँ उनके बगैर मैंने जीना नहीं चाहा,
तो फिर क्योँ उनके जीने के लिए मैंने मरना चाहां....
आपको दुल्हन बनाकर
आपको दुल्हन बनाकर,
एक सपना देखा था...
मोहब्बत हुई आपसे
आप में कोई अपना देखा था..
ख्वाबों में ख्वाओं के फूल खिले थे,
चाहता के महक थी,
जिन्दगी संग यूँ जिन्दगी जीना
और मर जाना देखा था......!!!
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