ललित साह
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जब कोई एहमियत ना रही जीने की
जब कोई एहमियत ना रही जीने की,
जब किसी को अफ़सोस ना रहा मेरे मरने का,
फिर क्योँ उनके बगैर मैंने जीना नहीं चाहा,
तो फिर क्योँ उनके जीने के लिए मैंने मरना चाहां....
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ललित साह
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