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नेपाली लाइसेन्सलाई '१८६ देशमा मान्यता'


 नेपाली अनुमति प्राप्त व्यक्तिले साक्षीको नागरिकता र पोसपोर्ट दिएपछि अमेरिकाको किडा जेनेरलले अन्तर्राष्ट्रिय मान्यता पाउने गरी अनुवाद गरेर पठाउँछ । किडाले सन् १९६८ मा भियनामा भएको संयुक्त राष्ट्रसंघको सडक ट्राफिक सम्झौताका आधारमा अन्तर्राष्ट्रिय लाइसेन्स रुजु गर्दै आएको छ । ५० नेपालीले आफ्नो लाइसेन्स अन्तर्राष्ट्रियकरण गरिसकेको नेपाली एजेन्ट प्रशंसा इन्टरनेसनलले जनाएको छ


तपाईसँग नेपाली सवारी चालक अनुमतिपत्र छ ? तर अरू कुनै पनि मुलुकमा काम नगरेर चिन्तामा पर्नुभएको छ ? त्यस्तो हो भने अब तपाईको चिन्ता कम हुने भएको छ । नेपाली लाइसेन्सको आधारमा अनुवाद गरिएको अन्तर्राष्ट्रिय अनुमतिपत्र लिन सकिने व्यवस्थाले यस्तो सजिलो हुने भएको हो । यस्तो लाइसेन्सबाट विश्वका १ सय ८६ देशमा सहजै सवारी साधन चलाउन सकिने छ ।

प्रशंसा इन्टरनेसनले नेपाली लाइसेन्सका आधारमा अन्तर्राष्ट्रिय मान्यता प्राप्त अनुमतिपत्र तयार गर्ने काम सुरु गरेको छ । 'विभिन्न १ सय ८६ देशमा चल्ने अन्तर्राष्ट्रिय लाइसेन्स तयार गर्ने काम सुरु गरेका हौं,' कम्पनीका प्रमूख कार्यकारी अधिकृत शिशिर उपाध्ययले भने ।

उपाध्ययका अनुसार अन्तर्राष्ट्रिय लाइसेन्स लिन सुरुमा र्फम भर्नुपर्छ । एक जना साक्षी आवश्यक पर्छ । साछी र आफ्नो नागरिकता र पासपोर्ट दिएपछि अमेरिकी कम्पनी किडा जेनेरलमा लाइसेन्स तयार गर्न पठाइदिन्छ । उसले यसलाई अन्तर्राष्ट्रिय रूपमा अनुवाद गरेर पठाउने छ । आवेदन दिएको दस दिनभित्र मेसिन रिडेबल लाइसेन्स नेपालमा आउनेे उपाध्यायले बताए । उनका अनुसार हालसम्म नेपालबाट ५० भन्दा बढी व्यक्तिले लाइसेन्स लिएका छन् । अमेरिका सरकारबाट अनुमति पाएको किडाले अन्तर्राष्ट्रिय ड्राइभिङ लाइसेन्स दिने गर्छ । यसले सन् १९६८ मा भियनामा भएको संयुक्त राष्ट्रसंघको सडक ट्राफिक सम्झौताका आधारमा अन्तर्राष्ट्रिय लाइसेन्स रुजु गर्दै आएको छ । किडाले स्टेट अफ न्युयोर्क, युएस डिपार्टमेन्ट अफ स्टेटका साथै नेपाली राजदूतावासबाट पनि कानुनी मान्यता पाएको छ ।

'संयुक्त राष्ट्रसंघमा सडक तथा ट्राफिक सम्झौतामा हस्ताक्षर गरेको सबै मुलुकमा यस लाइसेन्सले काम गर्छ,' उनले भने, 'नेपालले पनि यसमा हस्ताक्षर गरेको छ ।' किडाले नेपालमा यसको व्यवस्थान जिम्मा आशाको फूल नामक गैरसरकारी संस्थाले दिएको छ । आशाको फूलले काठमाडौंको प्रशंसा इन्टरनेसनलाई एजेन्टमा नियुक्त गरेको हो ।

'नेपाली लाइसेन्स १२ भाषामा अनुवाद हुन्छ,' उनले भने । तर अनुवाद गरिएको अन्तर्राष्ट्रिय लाइसेन्सले मात्र भने काम गर्दैन । उनले अरू मुलुकमा नेपाल सरकारले दिएको लाइसेन्स र अन्तर्राष्ट्रिय भाषामा अनुवाद भएको दुवै देखाउनुपर्ने बताए । कम्पनीले ३ सय र ४ सय डलरमा दुईखाले अनुवाद गरिएको लाइसेन्स दिने छ । '३ सय डलरमा स्टयान्डर्ड र ४ सयमा डिजिटल लाइसेन्स तयार गर्छौं,' उनले भने, 'बनाउन दिएको १० दिनमा हामी त्यो उपलब्ध गराउँछौं ।' यो लाइसेन्स लिएका व्यक्तिले अरू कुनै देशमा गएर कुनै पनि प्रकारको प्रशिक्षण लिनु पर्दैन ।

संयूक्त राष्ट्रसंघमा काम गरेका सर्भेश्वर पुरीले पनि हालै यस्तो लाइसेन्स लिएका छन् । 'यसअघि अमेरिकामा हुँदा अन्तर्राष्ट्रिय लाइसेन्स लिएको थिए,' उनले भने, 'नेपालबाट पनि यो लिन मिल्ने भएपछि मैले लिएँ ।' उनले दायाँ वा बायाँ जताबाट चलाउने व्यवस्था भएको देशमा पनि यसले काम गर्ने बताए । यस्तो लाइसेन्सको अवधि बढीमा तीन वर्ष हुन्छ । 'यो लाइसेन्सको अवधि तीन वर्षको हुन्छ,' उपाध्यायले भने, 'नेपालीको अवधि कम भए त्यसमा भएको अवधिमा हुन्छ ।'

यसको नवीकरण अनलाइन मार्फत गर्न सकिने उनको भनाइ छ । तर नेपाली लाइसेन्सको नवीकरण भने भएको हुनुपर्छ । उनका अनुसार गएको देशको स्थायी भिसा भए यस लाइसेन्सको आधारमा एक वर्षपछि त्यही मुलुकको लाइसेन्स लिन सकिने उनले बताए ।

यातायात व्यवस्था विभागले भने यसबारे आफूलाई जानकारी नभएको बताएको छ । 'हामीले नेपाली लाइसेन्सलाई अंग्रेजीमा अनुवाद त गर्छौं,' विभागका निर्देशक कपिल डंगोलले भने, 'नेपाली लाइसेन्स अनुवाद गरेपछि धेरै देशमा चल्ने बारे थाहा छ !
BY:- Kantipur news

माँ एस एम् एस



माँ की एक दुआ ज़िन्दगी बना देगी,

.
खुद रोएगी मगर तुम्हे हंसा देगी,
कभी भूल के भी ना "माँ '' को रुलाना,
एक छोटी सी गलती पूरा अष्र हिला देगी,
    

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संता बंता


संता (बंता से) - मेरी सपने में आज किसी से लड़ाई हो गयी थी, आज मैं नहीं सोऊंगा।
बंता (संता से) - लड़ाई तो कल हुई थी आज क्यों नही सोएगा।
संता - आज वो मुझसे बदला लेने आएगा।

मेरे गुनाहों की सजा दो मुझे


मेरे गुनाहों की सजा दो मुझे
ऐसा करो की भुला दो मुझे
निकल दो हमको अपने जिगर से तुम
आँखों से आँसूं बनाकर गिरा दो मुझे
न सर उठा के जी पाए इस जहा में हम
महफिल में रहकर तनहा तनहा से दिखे हम
तन्हाई डसती रहे ताउम्र मुझको
कुछ ऐसी बद्दुआ दे दे मुझे

रातों की नीद चली जाये
दिन का सकूँ छीन जाये
मै मांगू मौत की दुआ
जो जिंदगी में तब्दील हो जाये
जिन राहों में फूल सजाए थे तूने हमारे लिये
भर दो उन राहों को कांटो से चुभने के लिये
इस दिल न पिघलाओ मोम का समझ कर
ऐसा करो की पत्थर बना दो मुझे

जो तू करती बेवफाई मै रंजो गम भुला लेता
कभी सिगरेट लगता लबों पर कभी मै जाम उठा लेता
पर मेरी बेवफाई के लिये मुझे माफ़ मत करना
किसी की चाहत न मिले मुझको ऐसा मेरा हाल करना
जिससे कभी कोई न दे किसी को धोखा प्यार में
डूबती कश्ती को न छोड़े कोई नाखुदा मझधार में
जीते जी मौत का तलबगार बना दे मुझे
ऐसा करो की भुला दो मुझे

इतनी हैरत से न देख मुझे


इतनी हैरत से न देख मुझे मै तेरा आईना नही बीता हुआ कल हूँ
तू हो जाएगी परेशां गर सोचेगी मेरे बारे में
तू जो आएगी संग मेरे तू खुदबखुद मुझमे फंस जाएगी
मेरी आरजू तेरी जुस्तजू सब खाक हो जाएगी
फिर करेगी तू क्या तू तो हमे निकालने आई थी
और इसमे खुद ही फंस कर रह जाएगी
अब छोड़ तू देखना मुझको जा साथ उसके जो तेरा दर्पण है
मेरा कल भी तुझको समर्पित था और आज भी तुझे अर्पर्ण है
मुझको न समझ तू कमल मै तू कीचड़ में रहता हुआ दलदल हूँ....!

एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती

एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती

जब भूल चूका हूँ मै उसको फिर याद क्यों उसकी आती
मैंने छोड़ दिए सारे वह रस्ते जो उसकी याद दिलाते थे
जला दिए वह सारे पन्नें जो उनके नाम से आते थे
मैंने जला दिया उस दिल को जिसमे तुम रहते थे
घर फूक तमाशा देखते आशिक ऐसा सब कहते थे
पर जब होते है सकूँ में हम वह चैन चुराने आ जाती
एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती

अब क्या करे बता दो तुम सब कैसे उसको हम भूले
सावन में जब पड़ते झूले बिन सजना के कैसे झूले
हम जाते है मयखाने गम अपना दूर मिटाने को
मय में आ जाती तस्वीर है उनकी मेरा दर्द बढ़ाने को
रात में जब सोते है हम तो वह सपना बनकर आ जाती
एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती

जब लिखने बैठूं मै कुछ भी उसकी कविता बन जाती
उसकी झील सी गहरी आँखों में ये कश्ती मेरी डूब जाती
अब तो हैरान हूँ क्यों नही भूल पता हूँ उन्हें भूलकर
जो चले गये थे मुझे इस जहाँ में तनहा छोडकर
कविता की नायिका वो बनकर मेरी कविता में आ जाती
एक लड़की मेरे जीवन में क्यों बार -बार है आती


by:-चिदानन्द शुक्ल



रोज करें थोड़े से तुलसी के पत्तों का ये आसान प्रयोग मिट जाएंगे ये सारे रोग



तुलसी घर के वातावरण को पवित्र बनाती है साथ ही हवा में मौजूद बीमारी के बैक्टीरिया आदि को नष्ट कर देती है। तुलसी की सुंगध हमें श्वास संबंधी कई रोगों से बचाती है। साथ ही तुलसी की एक पत्नी रोज सेवन करने बार-बार बुखार नहीं आता।  तुलसी की पत्नी खाने से हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।तुलसी एक औषधी है। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटी के समान माना जाता है।

 तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। कहते हैं जो व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी की पांच पत्तियां खा लेते हैं वह अनेक प्रकार के रोगों से सुरक्षित रहते हैं। इसके तीन महीने तक सेवन करने से खांसी, सर्दी,बुखार, मलेरिया, कालाजार, जुकाम या काफ, जन्मजात जुकाम, श्वास रोग, दमा, स्मरण शक्ति का अभाव, पुराना से पुराना सिरदर्द, नेत्र-पीड़ा, उच्च अथवा निम्न रक्तचाप, ह्रदय रोग, शरीर का मोटापा, अम्लता, पेचिश, कब्ज, गैस, मन्दाग्नि,गुर्दे का ठीक से काम न करना, गुर्दे की पथरी खून की कमी,दांतों का रोग, सफेद दाग तथा अन्य बीमारियां, गठिया का दर्द, वृद्धावस्था की कमजोरी, विटामिन ए और सी की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग, सफेद दाग, कुष्ठ तथा चर्म रोग, शरीर की झुर्रियां, पुरानी बिवाइयां, महिलाओं की बहुत सारी बीमारियां, बुखार, खसरा आदि रोग दूर होते है।

सिर, गले, नाक का दर्द, आंख के रोग, सूजन, खुजली, अजीर्ण, उलटी , हृदयरोग, कृमि, फोड़े, मुहांसे, जलन , बालतोड़, लू लगना, स्नायूपीड़ा, स्वप्नदोष, मूर्छा, विष आदि तथा स्त्रियों और बच्चों के सामान्य रोगों के लिए चिकित्सा स्वयं ही की जा सकती है। तुलसी स्वाईन फ्लू को दूर रखने के लिए उपयोगी है। तुलसी के उपयोग से मनुष्यों में रोग प्रतिरोधक क्षमता तीव्रता से बढ़ती है और खाली पेट बीस-पच्चीस तुलसी के पत्तों का सेवन करने से स्वाईन फ्लू से बचा जा सकता है। तुलसी दमा टी.बी. में गुणकारी हैं।

मोमबत्ती से नयी ऊर्जा

आप अपने घर को मोमबत्तियों द्वारा नयी ऊर्जा से भर सकते हैं। साथ ही हमेशा ताजगी भी महसूस करेंगे।

आप अपने कमरे को चंद मोमबत्तियों का इस्तेमाल करके ज्यादा सुकून भरा बना सकते हैं। घर को सजाने में मोमबत्ती बहुत लोकप्रिय भी हैं। इसके पीछे एकमात्र वजह यह है कि मोमबत्ती किसी भी कमरे के मूड को बदल सकती है। वे दो तरीकों से कमरों की खूबसूरती बढ़ाती है। पहला वह वातावरण को ऊर्जादायक रोशनी से प्रकाशित करती है और दूसरा मोम को पिघलते देख कर आपका मूड बदल जाता है और आप सुकून महसूस करते हैं। कैंडल का इस्तेमाल अपने आप में एक स्फूर्तिदायक अनुभव है और यह आपको आपकी भावनाओं के ज्यादा करीब लाता है। इतना ही नहीं, कैंडल उगते हुए सूर्य की तरह रोशनी देती है और यह इलेक्ट्रिक लाइट की तरह इलेक्ट्रिक और मैग्नेटिक फील्ड भी नहीं बनाती। इस तरह की रोशनी रोमांटिक वातावरण बनाती है। अगर पंचतत्वों की बात करें तो कैंडल का सम्बन्ध अग्नि से है।
घर में कैसे करें कैंडल का इस्तेमाल: कैंडल को हमेशा एक लयबद्घ श्रृंखला में जलाएं, लेकिन इसका खास ख्याल रखें कि जब आप कमरे में ना हों तो यह जलती ना रहे। हर दिन आधे घंटे तक कैंडल की रोशनी में रहना आपके लिए बहुत ही लाभदायक है। अगर आप ज्यादा एक्सप्रेसिव आउटगोइंग और सोशल महसूस करना चाहते हैं तो अपने घर के दाहिने हिस्से में बहुत सी मोमबत्तियां जलाएं। इससे दाहिने हिस्से का अग्नि तत्व मजबूत होगा और यह आप में भावनात्मक बदलाव लायेगा।
अगर आप अपने सम्बन्ध में ज्यादा अंतरंगता और स्थिरता महसूस करना चाहते हैं तो अपने घर के दक्षिण-पश्चिम में दो कैंडल जलाएं। कैंडल का अग्नि तत्व दक्षिण-पश्चिम के पृथ्वी तत्व को सहारा देगा, जिससे ऐसी भावनाओं को समझने में आसानी होगी। अगर आप खुले दिमाग से अपने जीवन के रोचक पलों को जीना चाहते हैं तो अपने घर के पूवरेत्तर हिस्से में कैंडल जलाएं। इस कैंडल का अग्नि तत्व पूर्वोत्तर के भू तत्व को मजबूती देगा। आप अपना मुख पूर्वोत्तर दिशा में करके कैंडल की ओर देखते हुए ध्यान भी कर सकते हैं।
अगर आप अपने सम्बन्ध में रोमांस की भावना बढ़ाना चाहते हैं तो पश्चिमी हिस्से में दो कैंडल जलाएं। ध्यान रहे कि यह कैंडल मिट्टी के पात्र में ही जलाएं। एक लकड़ी की नाव में कैंडल डालें। इस नाव पर जलती मोमबत्ती को देख कर आप में नयी ऊर्जा का संचार होता है।

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हां हां हां हां हां हां .............

लड़के ने लड़की का हाथ पकड़कर कहा – “यू आर सो हॉट, बेबी !” लड़की ने खींचकर उसे एक थप्पड़ मारा और कहा – “हरामजादे….. मुझे 103 डिग्री बुखार है और तुझे आशिकी सूझ रही है....... ?

आशा की किरण

एक आशा की किरण 
जिसके सहारे संभाल कर रखे हुए हूँ,
एक फुल गुलाब का,
कोई तो आएगा सायद, कभी-न-कभी,
मेरे सुख -दुखों 
का साथी 
मेरे हमसफ़र, मेरा हमराही   

अगर तलाश करूँ तो कोई मिल ही जायेगा


अगर तलाश करूँ तो कोई मिल ही जायेगा,मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा,
तुम्हे ज़रूर कोई चाहतो से देखेगा,
मगर वो आखें हमारे कहा से लायेगा,
नजाने कब तीरे दिल पर नयी सी दस्तक हो,
मकान खाली हुवा है !तो कोई आएगा ही,
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ,
अगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा,
तुम्हारे साथ ये मौसम फरिस्तों जैसा है,
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सताएगा..........!!


©ललित साह 

हर एक शाम आती है,

हर एक शाम आती है, 
तेरी यादों की घटायें 
और हर रात बरसती है,
मेरे तन्हाई में,
मेरे महबूब में जी नहीं सकता तेरे बगैर ,
जहर ही जहर भरा है सनम तेरी जुदाई में.....!!


© ललित साह 

कुछ सोचू तो तेरा ख्याल आ जाता है



                                             


कुछ सोचू तो तेरा ख्याल आ जाता है,
कुछ बोलू वो तेरा नाम आ जाता है ,
कब तक छुपाऊ दिल की बात,
उसकी हर अदा पर हमको प्यार आ जाता है....!!






लाखों ज़ख्म खाए हम ने,


लाखों ज़ख्म खाए हम ने,
अफ़सोस उन्हें हम पर ऐतबार नहीं है,
क्या गुज़रते है दिल पे,
जब तुम कहती हो तुमसे प्यार नहीं है,

जिन्दगी में हम ने कभी कुछ चाहा ही नहि,
जिसे चाहा उसे कभि पाया हि नहि,
जिसे पाया उसे यूहीॅ खो दिया हम ने,
जैसे जिन्दगी मे कभि कोइ आया हि नहि

अब उसकि चाहत में ये नौबत आ गये है कि,
ठनढि हवा भि हमे जला कर चले गया,
कहती है आप यहाँ तडपते हि रेह गये,
मैं तुमहारे सनम को छु कर भि आ गया,

किस कि यादों ने पागल बना रखा है,
कहीं मर ना जाउं मै कफ़न सिला रखा हुं,
जलाने से पहले दिल निकाल लेना,
कहीं वो ना जल जायें जो दिल में छुपा रखा था,

आखों में आंसु आ जाते हैं,
फिर भि लबों पर हंसि रखना परता है,
ये मोहबब्त भि क्या चिज़ है यारों,
जिस से करों उसि से छुपाना पडता हैं,
 

चन्द्र ग्रहण 10/December/2011

इस वर्ष गत 15 जून 2011 को हुआ पूर्ण चन्द्र ग्रहण भी सम्पूर्ण भारत ,नेपाल ,बांग्लादेश,पाकिस्तान में नजर आया था तथा आज  शनिवार को होने वाला वर्ष का अंतिम चन्द्र ग्रहण भी पूरे भारत,नेपाल ,बांग्लादेश,पाकिस्तान  और पूर्व ,पच्छिम देशो में  भी  दिखाई देगा ।  यह ग्रहण भारतीय समयानुसार 6 बजकर 15 मिनिट चार सेंकण्ड पर प्रारंभ होकर आठ बजकर एक मिनिट आठ सेंकण्ड तक रहेगा और नौ बजकर 48 मिनिट तीन सेंकण्ड पर समाप्त होगा।

एक सबब प्यार का





एक सबब प्यार का, कुछ तो है बात ये,
हो ही जाती है क्यों बात बिन बात के ,
अपनी यादों को रख दर किनारे कहीं,
आ ही जाती है याद ये बिन बात के 

हमने देखा है जो उम्र के मोड़ पर,
हैं खडे वो छितिज़ की तरह याद मैं,
जाने गुम हैं कहीं,कहीं मशगूल है,
उनको आवाज दी ,बोलते ही नहीं.

ऐसे दुनिया मैं रिश्ते हैं बनते मगर,
प्यार ऐसा है जो ,बात होती जुदा,
उसकी यादें है तनहा समा साथ मैं,
सूख जाती हैं आँखें फुहारों के साथ मैं.

अब तो ऐसे हैं वो, एक शिला जैसी है,
कितने दिन के शगूफे जेहन मैं पडे,
कब तलक आग दबके रहे उनमें यूँ,
देखते हैं उन्हें जलते अनल की तरह.

इसलिए बारिशों से तवारुफ़ करें,
उसकी बूंदों से जलने की आदत जो है,
भाप बनकर उडी उसके तन से छुई,
आग बूंदों की माफिक चमक सी गयी !!

पति &पतनी

पति ऑफिस जा रहा था।
पत्नी प्यार से बोली- सी यू इन द इवनिंग
पति (गुस्से से)- धमकी किसे दे रही है, मैं भी तुझे देख लूंगा।

संता & बंता


बंता (संता से)- अगर आपको गर्मी लगती है तो क्या करते हो?
संता  - ए.सी के पास बैठ जाता हूं।
बंता- अगर फिर भी गर्मी लगे तो?
संता- तो एसी ऑन कर देता हूं.!

जो तेरा बुरा करता है !


वो समझे ना समझे

वो समझे ना समझे हमारे जजबात को
हम मानेगे उसकी हर बात को
हम चले जायेंगे एक दिन 
 इस दुनिया को छोड़ कर,
वो आंसू से रोयेंगे हर रात को ! 

घर व मन्दिर में अंतर


घर व मन्दिर में अंतर

हर मनुष्य स्वंय को धार्मिक मानता है ! सच तो यह है की धर्म को तो हर कोई मानता है , परन्तु धर्म की कोई नहीं मानता है कोई मुझसे पूछता है की घर व मंदिर में क्या अंतर है ? मैं कहता हूँ घर में रहती हैं भगवान की बनाई हुई मूर्तियाँ और मंदिर में रहती है , न हिलती हैं,  न  डुलती है, इनसान की बनाई हुई मूर्तियाँ ! फिर भी आदमी समझ नहीं पाता है , खुद को कहता है  धार्मिक और अपनी मूर्तियों को बचाने के लिए मिटाता है भगवान की बनाई हुई मूर्तियाँ !!

वर्क इन लन्दन


 भिजिटर भिषा बाहेकका लागि बेलायतले डिसेम्वर १२ तारिखदेखि अनिवार्इ रुपमा भिसा आवेदन तथा अन्तरवार्ताका लागि समय लिन अनलाईन ब्यवस्था गरेको छ ।
सोमबार काठमाडौंस्थित बेलायती दूतावासले जारी गरेको बिज्ञप्ति अनुसार यो ब्यवस्था हालका लागि टाइर १, टाइर २, टाइर ३ र टाइर ४ का लागि हो । टाइर १ उच्च दक्षता भएका कमदार, ब्यवसायी, लगानीकर्तालगायतका लागि होभने टाइर २ दक्ष कामदारको लागि हो । त्यसैगरी टायर ३ विद्यार्थीका लागि र टाइर ५ अस्थायी कामदारका लागि हो ।
तोकिएको समयपछि बेलायती बोर्टर एजेन्सीले हातले भरेको आवेदन नलिनेसेत उल्लेख गरेको छ ।
यसले आवेदक र भिजा केन्द्रहरुको समयको बचत हुनुका साथै जानकारीहरु लिन र अभिलेखमा राख्न सजिलो हुने बताइएको छ । यसअघि अमेरिकी भिषाका लागि अनलाईन आवेदनको ब्यवस्था रहेको छ ।
'बेलायती बोर्डर एजेन्सी र उसका भीएफएस छरितो सेवा दिनका लागि प्रतिबद्ध छौं र हामी हाम्रा प्रकृयाहरुलाई यिकुराहरु दिमागमा राखेर परिवर्तन गर्ने छौं । यही सन्दर्भमा अनलाईन भिषा आवेदनले समयको बचत गर्नेछ । हाललाई केही आवेदनकले मात्र यो सेवा लिन सक्नेछभन् तर विस्तारै सबैका लागि यो लागु हुनेछ'  एजेन्सीका निर्देशक थोमस ग्रिगले भनेका छन् ।
आवेदनका लागि निम्न वेवसाइटमा जानु पर्ने हुन्छ:

अब नहीं रहे देव आनन्द जी

     


सदाबहार फिल्म अभिनेता देव आनंद ने हिंदी फिल्म जगत में 1951 की 'बाजी' से लेकर 2011 की 'चार्जशीट' तक छह दशकों का लम्बा सफर तय किया। उम्र को पीछे छोड़ देने वाले देव आनंद ने हिंदी सिनेमा को श्वेत-श्याम युग से तकनीकी रंगीन युग में परिवर्तित होते देखा, और अपने पीछे एक ऐसी अनोखी विरासत छोड़ी जो सिनेमाई कार्यो से कही आगे निकल चुकी है।

देव आनंद ने अपनी हालिया रिलीज फिल्म 'चार्जशीट' तक अभिनय, निर्देशन, निर्माण सब कुछ किया.. और उस समय वह 88 के हो चुके थे और हमेशा की तरह सक्रिय थे। 

देव आनंद ने सौम्य, सज्जन व्यक्ति के चरित्र को परदे पर चरितार्थ किया, और नलिनी जयवंत से लेकर जीनत अमान तक, कई पीढ़ी की अभिनेत्रियों के साथ रोमांटिक भूमिका निभाई।

देव आनंद ने 'मुनीमजी', 'सीआईडी' और 'हम दोनों' जैसी फिल्मों के जरिए श्वेत-श्याम युग पर राज किया और उसके बाद 'ज्यूल थीफ' और 'जॉनी मेरा नाम' जैसी क्लासिक फिल्मों के साथ रंगीन युग में प्रवेश किया। उन्होंने जीनत और टीना मुनीम जैसी कई मशहूर अभिनेत्रियों के करियर को शुरुआती आधार मुहैया कराया।  

जीवन की अंतिम सांस तक अपनी फिल्मी परियोजनाओं के साथ सक्रिय रहे देव आनंद बॉलीवुड के वास्तविक पीटर पैन (सदाबहार) थे। उन्होंने अपने गीत "मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया" के दर्शन को सचमुच अपने जीवन में उतारा।

देव आनंद ने 110 से अधिक फिल्मों में नायक की भूमिका निभाई। 2011 में आई उनकी फिल्म 'चार्जशीट' उनकी अंतिम फिल्म साबित हुई। इस फिल्म को उन्होंने निर्देशित किया था और इसमें अभिनय भी किया था। देव आनंद की आत्मकथा 'रोमांसिंग विद लाइफ' सितम्बर 2007 में जारी हुई थी। 

देव आनंद ने 26 सितम्बर, 1923 को धरम देव पिशोरीमल आनंद के रूप में तत्कालीन अविभाजित पंजाब के गुरदासपुर जिले में एक वकील पिता के घर में जन्म लिया था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर (फिलहाल पाकिस्तान में) से स्नातक की डिग्री हासिल की थी। उसके बाद वह स्वप्न नगरी मुम्बई आ गए, जहां उनके बड़े भाई दिवंगत फिल्मकार चेतन आनंद पहले से अपने अभिनय के सपने को पूरा करने के लिए जमीन तलाश रहे थे।

अन्य लोगों की तरह देव आनंद ने भी सफलता से पहले काफी संघर्ष किया। उन्होंने 160 रुपये के वेतन पर चर्चगेट में एक सैन्य सेंसर कार्यालय में काम किया, और अपने भाई चेतन के साथ भारतीय जन नाट्य मंच (इप्टा) से भी जुड़ गए। 

भाग्य ने साथ दिया और जल्द ही उन्हें प्रभात टाकीज की तरफ से 'हम एक हैं' (1946) में एक अभिनेता के रूप में काम करने का प्रस्ताव मिला। पुणे में फिल्म की शूटिंग के दौरान देव आनंद की मुलाकात गुरु दत्त से हुई, और वहीं दोनों की मित्रता हो गई।

देव आनंद के करियर में दो वर्षों बाद महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब अशोक कुमार ने बाम्बे टाकीज की हिट फिल्म 'जिद्दी' (1948) में काम करने का बड़ा मौका दिया। इस फिल्म के बाद अशोक कुमार देव आनंद को लगातार फिल्मों में हीरो बनाते रहे। 

देव आनंद ने 1949 में खुद की निर्माण कम्पनी, नवकेतन की शुरुआत की। पूर्व के वादे के मुताबिक उन्होंने अपने बैनर की पहली फिल्म 'बाजी' (1951) के निर्देशन के लिए गुरु दत्त से कहा। इस फिल्म ने देव आनंद को रातों रात स्टार बना दिया, और वह जीवन के अंतिम सांस तक, छह दशकों बाद भी स्टार बने रहे।

देव आनंद वैसे तो हर लड़की के सपनों के राजकुमार हुआ करते थे, लेकिन वह उस जमाने की सुपर स्टार सुरैया पर फिदा हो गए। दोनों के बीच लम्बे समय तक रोमांस चला, लेकिन इस रिश्ते का तब त्रासदपूर्ण अंत हो गया, जब सुरैया की नानी ने इस रिश्ते को मंजूरी नहीं दी और दोनों को मजबूरन जुदा होना पड़ा।

बाद में देव आनंद ने एक अन्य नायिका कल्पना कार्तिक से शादी की। 

देव आनंद को हिंदी सिनेमा में योगदान के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। जीवन के प्रति उनकी दिलचस्पी हमेशा याद की जाएगी। उनके परिवार में पत्नी, एक पुत्र और एक पुत्री है।

महा कवी विधापति जी


विधापति

मैथिल कवि कोकिल, रसासिद्ध कवि विद्यापति, तुलसी, सूर, कबूर, मीरा सभी से पहले के कवि हैं। अमीर खुसरो यद्यपि इनसे पहले हुए थे। इनका संस्कृत, प्राकृत अपभ्रंश एवं मातृ भाषा मैथिली पर समान अधिकार था। विद्यापति की रचनाएँ संस्कृत, अवहट्ट, एवं मैथिली तीनों में मिलती हैं।
देसिल वयना अर्थात् मैथिली में लिखे चंद पदावली कवि को अमरच्व प्रदान करने के लिए काफी है। मैथिली साहित्य में मध्यकाल के तोरणद्वार पर जिसका नाम स्वर्णाक्षर में अंकित है, वे हैं चौदहवीं शताब्दी के संघर्षपूर्ण वातावरण में उत्पन्न अपने युग का प्रतिनिधि मैथिली साहित्य-सागर का वाल्मीकि-कवि कोकिल विद्यापति ठाकुर। बहुमुखी प्रतिमा-सम्पन्न इस महाकवि के व्यक्तित्व में एक साथ चिन्तक, शास्रकार तथा साहित्य रसिक का अद्भुत समन्वय था। संस्कृत में रचित इनकी पुरुष परीक्षा, भू-परिक्रमा, लिखनावली, शैवसर्वश्वसार, शैवसर्वश्वसार प्रमाणभूत पुराण-संग्रह, गंगावाक्यावली, विभागसार, दानवाक्यावली, दुर्गाभक्तितरंगिणी, गयापतालक एवं वर्षकृत्य आदि ग्रन्थ जहाँ एक ओर इनके गहन पाण्डित्य के साथ इनके युगद्रष्टा एवं युगस्रष्टा स्वरुप का साक्षी है तो दूसरी तरफ कीर्तिलता, एवं कीर्तिपताका महाकवि के अवह भाषा पर सम्यक ज्ञान के सूचक होने के साथ-साथ ऐतिहासिक साहित्यिक एवं भाषा सम्बन्धी महत्व रखनेवाला आधुनिक भारतीय आर्य भाषा का अनुपम ग्रन्थ है। परन्तु विद्यापति के अक्षम कीर्ति का आधार, जैसा कि पहले कहा जा चुका है, है मैथिली पदावली जिसमें राधा एवं कृष्ण का प्रेम प्रसंग सर्वप्रथम उत्तरभारत में गेय पद के रुप में प्रकाशित है। इनकी पदावली मिथिला के कवियों का आदर्श तो है ही, नेपाल का शासक, सामंत, कवि एवं नाटककार भी आदर्श बन उनसे मैथिली में रचना करवाने लगे बाद में बंगाल, असम तथा उड़ीसा के वैष्णभक्तों में भी नवीन प्रेरणा एवं नव भावधारा अपने मन में संचालित कर विद्यापति के अंदाज में ही पदावलियों का रचना करते रहे और विद्यापति के पदावलियों को मौखिक परम्परा से एक से दूसरे लोगों में प्रवाहित करते रहे।
कवि कोकिल की कोमलकान्त पदावली वैयक्तिकता, भावात्मकता, संश्रिप्तता, भावाभिव्यक्तिगत स्वाभाविकता, संगीतात्मकता तथा भाषा की सुकुमारता एवं सरलता का अद्भुत निर्देशन प्रस्तुत करती है। वर्ण्य विषय के दृष्टि से इनकी पदावली अगर एक तरफ से इनको रससिद्ध, शिष्ट एवं मर्यादित श्रृंगारी कवि के रुप में प्रेमोपासक, सौन्दर्य पारसी तथा पाठक के हृदय को आनन्द विभोर कर देने वाला माधुर्य का स्रष्टा, सिद्धहस्त कलाकार सिद्ध करती है तो दूसरी ओर इन्हें भक्त कवि के रुप में शास्रीय मार्ग एवं लोकमार्ग दोनों में सामंजस्य उपस्थित करने वाला धर्म एवं इष्टदेव के प्रति कवि का समन्वयात्मक दृष्टिकोण का परिचय देने वाला एक विशिष्ट भक्त हृदय का चित्र उपस्थित करती है साथ ही साथ लोकाचार से सम्बद्ध व्यावहारिक पद प्रणेता के रुप में इनको मिथिला की सांस्कृतिक जीवन का कुशल अध्येता प्रमाणित करती है। इतना ही नहीं, यह पदावली इनके जीवन्त व्यक्तित्व का भोगा हुआ अनुभूति का साक्षी बन समाज की तात्कालीन कुरीति, आर्थिक वैषम्य, लौकिक अन्धविश्वास, भूत-प्रेत, जादू-टोना, आदि का उद्घाटक भी है। इसके अलावे इस पदावली की भाषा-सौष्ठव, सुललित पदविन्यास, हृदयग्राही रसात्मकता, प्रभावशाली अलंकार, योजना, सुकुमार भाव व्यंजना एवं सुमधुर संगीत आदि विशेषता इसको एक उत्तमोत्तम काव्यकृति के रुप में भी प्रतिष्ठित किया है। हालांकि यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि महाकवि विद्यापत् अपनी अमर पदावली के रचना के लिए अपने पूर्ववर्ती संस्कृत कवियों खासकर भारवि, कालिदास, जयदेव, हर्ष अमरुक, गोवर्द्धनाचार्य आदि से कम ॠणि नहीं हैं। क्योंकि जिस विषयों को महाकवि ने अपनी पदावली में प्रस्तुत किया वे विषय पूर्व से ही संस्कृत के कवियों की रचनाओं में प्रस्तुत हो चुका था । विद्यापति की मौलिकता इसमें निहित है कि इन्होने उन रचनाओं की विषय उपमा अलंकार परिवेश आदि का अन्धानुकरण न कर उसमें अपने दीर्ध जीवन का महत्वपूर्ण एवं मार्मिक नानाविध अनुभव एवं आस्था को अनुस्यूत कर अप्रतिम माधुर्य एवं असीम प्राणवत्ता से युक्त मातृभाषा में यो प्रस्तुत किया कि वह इनके हृदय से न:सृक वल्कु लबजही मानव के हृदय में प्रवेश कर जाता है। यही कारण है कि महाकवि की काव्य प्रतिमा की गुञ्ज मात्र मिथिलांचल तक नहीं अपितु समस्त पूर्वांचल में, पूर्वांचल में भी क्यों समस्त भारतवर्ष में, समस्त भारतवर्ष में ही क्यों अखिल विश्व में व्याप्त है। राजमहल से लेकर पर्णकुटी तक में गुंजायमान विद्यापति का कोमलकान्त पदावली वस्तुत: भारतीय साहित्य की अनुपम वैभव है।
विद्यापति के प्रसंग में स्वर्गीय डॉ. शैलेन्द्र मोहन झा की उक्ति वस्तुत: शतप्रतिशत यथार्थ हैष वे लिखते हैं:
"नेपालक पार्वत्य नीड़ रटओ अथवा कामरुपक वनवीचिका, बंगालक शस्य श्यामला भूमि रहओ अथवा उतकलक नारिकेर निकुंज, विद्यापतिक स्वर सर्वत्र समान रुप सँ गुंजित होइत रहैत छनि। हिनक ई अमर पदावली जहिना ललनाक लज्जावृत कंठ सँ, तहिना संगीतज्ञक साधित स्वरसँ, राजनर्तकीक हाव-भाव विलासमय दृष्टि निक्षेपसँ, भक्त मंडलीक कीर्तन नर्तन सँ, वैष्णव-वैश्णवीक एकताराक झंकारसँ नि:सृत होइत युग-युगसँ श्रोतागणकें रस तृप्त करैत रहल अछि एवं करत। मिथिला मैथिलक जातीय एवं सांस्कृतिक गरिमाक मान-बिन्दु एवं साहित्यिक जागरणक प्रतीक चिन्हक रुप में आराध्य एवं आराधित महाकवि विद्यापतिक रचना जरिना मध्यकालीन मैथिली साहित्यिक अनुपम निधि आछि तहिना मध्यकाल में रचित समस्त मैथिली साहित्य सेहो हिनके प्रभावक एकान्त प्रतिफल अछि।"
महाकवि विद्यापति का जन्म वर्तमान मधुबनी जनपद के बिसपू नामक गाँव में एक सभ्रान्त मैथिल ब्राह्मण गणपति ठाकुर (इनके पिता का नाम) के घर हुआ था। बाद में यसस्वी राजा शिवसिंह ने यह गाँव विद्यापति को दानस्वरुप दे दिया था। इस दानपत्र कि प्रतिलिपि आज भी विद्यापति के वंशजों के पास है जो आजकल सौराठ नामक गाँव में रहते हैं। उपलब्ध दस्तावेजों एवं पंजी-प्रबन्ध की सूचनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि महाकवि अभिनव जयदेव विद्यापति का जन्म ऐसे यशस्वी मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था, जिस पर विद्या की देवी सरस्वती के साथ लक्ष्मी की भी असीम कृपा थी। इस विख्यात वंश में (विषयवार विसपी) एक-से-एक विद्धान्, शास्रज्ञ, धर्मशास्री एवं राजनीतिज्ञ हुए। महाकवि के वृहृप्रपितामह देवादिव्य कर्णाटवंशीय राजाओं के सन्धि, विग्रहिक थे तथा देवादिव्य के सात पुत्रों में से धीरेश्वर, गणेश्वर, वीरेश्वर
आदि महराज हरिसिंहदेव की मन्त्रिपरिषद् में थे। इनके पितामह जयदत्त ठाकुर एवं पिता गणपति ठाकुर राजपण्डित थे। इस तरह पाण्डिल्य एवं शास्रज्ञान कवि विद्यापति को सहज उत्तराधिकार में मिला था। अनेक शास्रीय विषयों पर कालजयी रचना का निर्माण करके विद्यापति ने अपने पूर्वजों की परम्परा को ही आगे बढ़ाया।
ऐसे किसी भी लिखित प्रमाण का अभाव है जिससे यह पता लगाया जा सके कि महाकवि कोकिल विद्यापति ठाकुर का जन्म कब हुआ था। यद्यपि महाकवि के एक पद से स्पष्ट होता है कि लक्ष्मण-संवत् २९३, शाके १३२४ अर्थात् मन् १४०२ ई. में देवसिंह की मृत्यु हुई और राजा शिवसिंह मिथिला नरेश बने। मिथिला में प्रचलित किंवदन्तियों के अनुसार उस समय राजा शिवसिंह की आयु ५० वर्ष की थी और कवि विद्यापति उनसे दो वर्ष बड़े, यानी ५२ वर्ष के थे। इस प्रकार १४०२-५२उ१३५० ई. में विद्यापति की जन्मतिथि मानी जा सकती है। लक्ष्मण-संवत् की प्रवर्त्तन तिथि के सम्बन्ध में विवाद है। कुछ लोगों ने सन् ११०९ ई. से, तो कुथ ने १११९ ई. से इसका प्रारंभ माना है। स्व. नगेन्द्रनाथ गुप्त ने लक्ष्मण-संवत् २९३ को १४१२ ई. मानकर विद्यापत् की जन्मतिथि १३६० ई. में मानी है। ग्रिपर्सन और महामहोपाध्याय उमेश मिश्र की भी यही मान्यता है। परन्तु श्रीब्रजनन्दन सहाय "ब्रजवल्लभ", श्रीराम वृक्ष बेनीपुरी, डॉ. सुभद्र झा आदि सन् १३५० ई. को उनका जन्मतिथि का वर्ष मानते हैं। डॉ. शिवप्रसाद के अनुसार "विद्यापति का जन्म सन् १३७४ ई. के आसपास संभव मालूम होता है।" अपने ग्रन्थ विद्यापति की भूमिका में एक ओर डॉ. विमानविहारी मजुमदार लिखते है कि "यह निश्चिततापूर्वक नहीं जाना जाता है कि विद्यापति का जन्म कब हुआ था और वे कितने दिन जीते रहे" (पृ। ४३) और दूसरी ओर अनुमान से सन् १३८० ई. के आस पास उनकी जन्मतिथि मानते हैं।
हालांकि जनश्रुति यह भी है कि विद्यापति राजा शिवसेंह से बहुत छोटे थे। एक किंवदन्ती के अनुसार बालक विद्यापति बचपन से तीव्र और कवि स्वभाव के थे। एक दिन जब ये आठ वर्ष के थे तब अपने पिता गणपति ठाकुर के साथ शिवसेंह के राजदरबार में पहुँचे। राजा शिवसिंह के कहने पर इन्होने निम्नलिखित दे पंक्तियों का निर्माण किया:
पोखरि रजोखरि अरु सब पोखरा।
राजा शिवसिंह अरु सब छोकरा।।
यद्यपि महाकवि की बाल्यावस्था के बारे में विशेष जानकारी नहीं है। विद्यापति ने प्रसिद्ध हरिमिश्र से विद्या ग्रहण की थी। विख्यात नैयायिक जयदेव मिश्र उर्फ पक्षधर मिश्र इनके सहपाठी थे। जनश्रुतियों से ऐसा ज्ञात होता है।
लोगों की धारणा यह है कि महाकवि अपने पिता गणपति ठाकुर के साथ बचपन से ही राजदरबार में जाया करते थे। किन्तु चौदहवीं सदी का शेषार्ध मिथिला के लिए अशान्ति और कलह का काल था। राजा गणेश्वर की हत्या असलान नामक यवन-सरदार ने कर दी थी। कवि के समवयस्क एवं राजा गणेश्वर के पुत्र कीर्तिसिंह अपने खोये राज्य की प्राप्ति तथा पिता की हत्या का बदला लेने के लिए प्रयत्नशील थे। संभवत: इसी समय महाकवि ने नसरतशाह और गियासुद्दीन आश्रमशाह जैसे महपुरुषों के लिए कुछ पदों की रचना की। राजा शिवसिंह विद्यापति के बालसखा और मित्र थे, अत: उनके शासन-काल के लगभग चार वर्ष का काल महाकवि के जीवन का सबसे सुखद समय था। राजा शिवसिंह ने उन्हें यथेष्ठ सम्मान दिया। बिसपी गाँव उन्हें दान में पारितोषिक के रुप में दिया तथा 'अभिनवजयदेव' की उपाधि से नवाजा। कृतज्ञ महाकवि ने भी अपने गीतों द्वारा अपने अभिन्न मित्र एवं आश्रयदाता राजा शिवसिंह एवं उनकी सुल पत्नी रानी लखिमा देवी (ललिमादेई) को अमर कर दिया। सबसे अधिक लगभग २५० गीतों में शिवसिंह की भणिता मिलती है।
किन्तु थोड़े ही समय में ही पुन: मिथिला पर दुर्दैव का भयानक कोप हुआ। यवनों के आसन्न आक्रमण का आभाष पाकर राजा शिवसिंह ने विद्यापति के संरक्षण में अपने परिजनों को नेपाल-तराई-स्थित द्रोणवार के अधिपति पुरादित्य के आश्रम में रजाबनौली भेज दिया। युद्ध क्षेत्र में सम्भवत: शिवसिंह मारे गये। विद्यापति लगभग १२ वर्ष तक पुरादित्य के आश्रम में रहे। वहीं इन्होने लिखनावली की रचना की उस समय के एक पद से ज्ञात होता है कि उनके लिए यह समय बड़ा दु:खदायी था। शिवसिंह के छोटे भाई पद्मसिंह को राज्याधिकार मिलने पर औइनवार-वंशीय राजाओं का आश्रय पुन: महाकवि को प्राप्त हुआ और वे मिथिला वापस लौट आए। पद्मसिंह के केवल एक वर्ष के शासन के बाद उनकी धर्मपत्नी विश्वासदेवी मिथिला के राजसिंहासन पर बैठी, जिनके आदेश से उन्होने दो महत्वपूर्ण ग्रन्थः शैवसर्वस्वसार तथा गंगावाक्यावली लिखे। विश्वासदेवी के बाद राजा नरसिंहदेव 'दपंनारायण', महारानी धीरमती, महाराज धीरसिंह 'हृदयनारायण', महाराज भैरवसिंह 'हरिनारायण' तथा चन्द्रसिंह 'रुपनारायण' के शासनकाल में महाकवि को लगातार राज्याश्रय प्राप्त होता रहा था।
जन्मतिथि की तरह महाकवि विद्यापति ठाकुर की मृत्यु के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद है। इतना स्पष्ट है और जनश्रुतियाँ बताती है कि आधुनिक बेगूसराय जिला के मउबाजिदपुर (विद्यापतिनगर) के पास गंगातट पर महाकवि ने प्राण त्याग किया था। उनकी मृत्यु के सम्बन्ध में यह पद जनसाधारण में आज भी प्रचलित है:
'विद्यापतिक आयु अवसान
कातिक धवल त्रयोदसि जान।'
यहाँ एक बात स्पषट करना अनिवार्य है। विद्यापति शिव एवं शक्ति दोनों के प्रबल भक्त थे। शक्ति के रुप में उन्होंने दुर्गा, काली, भैरवि, गंगा, गौरी आदि का वर्णन अपनी रचनाओं में यथेष्ठ किया है। मिथिला के लोगों में यह बात आज भी व्याप्त है कि जब महाकवि विद्यापति काफी उम्र के होकर रुग्न हो गए तो अपने पुत्रों और परिजनों को बुलाकर यह आदेश दिया:
"अब मैं इस शरीर का त्याग करना चाहता हूँ। मेरी इच्छा है कि मैं गंगा के किनारे गंगाजल को स्पर्श करता हुआ अपने दीर्ध जीवन का अन्तिम सांस लूं। अत: आप लोग मुझे गंगालाभ कराने की तैयारी में लग जाएं। कहरिया को बुलाकर उस पर बैठाकर आज ही हमें सिमरिया घाट (गंगातट) ले चलें।"
अब परिवार के लोगों ने महाकवि का आज्ञा का पालन करते हुए चार कहरियों को बुलाकर महाकवि के जीर्ण शरीर को पालकी में सुलाकर सिमरिया घाट गंगालाभ कराने के लिए चल पड़े - आगे-आगे कहरिया पालकी लेकर और पीछे-पीछे उनके सगे-सम्बन्धी। रात-भर चलते-चलते जब सूर्योदय हुआ तो विद्यापति ने पूछा: "भाई, मुझे यह तो बताओं कि गंगा और कितनी दूर है?"
"ठाकुरजी, करीब पौने दो कोस।" कहरियों ने जवाब दिया। इस पर आत्मविश्वास से भरे महाकवि यकाएक बोल उठे: "मेरी पालकी को यहीं रोक दो। गंगा यहीं आएंगी।"
"ठाकुरजी, ऐसा संभव नहीं है। गंगा यहाँ से पौने दो कोस की दूरी पर बह रही है। वह भला यहाँ कैसे आऐगी? आप थोड़ी धैर्य रक्खें। एक घंटे के अन्दर हम लोग सिमरिया घाट पहुँच जाएंगे।"
"नहीं-नहीं, पालकी रोके" महाकवि कहने लगे, "हमें और आगे जाने की जरुरत नहीं। गंगा यहीं आएगी। आगर एक बेटा जीवन के अन्तिम क्षण में अपनी माँ के दर्शन के लिए जीर्ण शरीर को लेकर इतने दूर से आ रहा है तो क्या गंगा माँ पौने दो कोस भी अपने बेटे से मिलने नहीं आ सकती? गंगा आएगी और जरुर आएगी।"
इतना कहकर महाकवि ध्यानमुद्रा में बैठ गए। पन्द्रह-बीस मिनट के अन्दर गंगा अपनी उफनती धारा के प्रवाह के साथ वहाँ पहुँच गयी। सभी लोग आश्चर्य में थे। महाकवि ने सर्वप्रथम गंगा को दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया, फिर जल में प्रवेश कर निम्नलिखित गीत की रचना की:
बड़ सुखसार पाओल तुअ तीरे।
छोड़इत निकट नयन बह नीरे।।
करनोरि बिलमओ बिमल तरंगे।
पुनि दरसन होए पुनमति गंगे।।
एक अपराध घमब मोर जानी।
परमल माए पाए तुम पानी।।
कि करब जप-तप जोग-धेआने।
जनम कृतारथ एकहि सनाने।।
भनई विद्यापति समदजों तोही।
अन्तकाल जनु बिसरह मोही।।
इस गंगा स्तुति का अर्थ कुछ इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है:
"हे माँ पतित पावनि गंगे, तुम्हारे तट पर बैठकर मैंने संसार का अपूर्व सुख प्राप्त किया। तुम्हारा सामीप्य छोड़ते हुए अब आँखों से आँसू बह रहे हैं। निर्मल तरंगोवानी पूज्यमती गंगे! मैं कर जोड़ कर तुम्हारी विनती करता हूँ कि पुन: तुम्हारे दर्शन हों।"
ठमेरे एक अपराध को जानकर भी समा कर देना कि हे माँ! मैंने तुम्हें अपने पैरों से स्पर्श कर दिया। अब जप-तप, योग-ध्यान की क्या आवश्यकता? एक ही स्नान में मेरा जन्म कृतार्थ हो गया। विद्यापति तुमसे (बार-बार) निवेदन करते है कि मृत्यु के समय मुझे मत भूलना।"
इतना ही नहीं, कवि विद्यापति ने अपनी पुत्री दुल्लहि को सम्बोधित करते हुए गंगा नदी के तट पर एक और महत्वपूर्ण गीत का निर्माण किया। यह गीत कुछ इस प्रकार है:
दुल्लहि तोर कतय छथि माय। कहुँन ओ आबथु एखन नहाय।। वृथा बुझथु संसार-विलास। पल-पल नाना भौतिक त्रास।। माए-बाप जजों सद्गति पाब। सन्नति काँ अनुपम सुख आब।। विद्यापतिक आयु अवसान। कार्तिक धबल त्रयोदसि जान।।
इसका सारांश यह है कि महाकवि वयोवद्ध हो चुके हैं। अपने जीवन का अंत नजदीक देखकर इस नश्वर शरीर का त्याग करने के पवित्र तट पर अपने सखा-सम्बन्धियों के साथ पहुँच गये हैं। पूज्यशलीला माँ गंगा अपने इस महान यशस्वी पुत्र को अंक में समेट लेने के लिए प्रस्तुत हो गई हैं। इसी क्षण महाकवि विद्यापति अपनी एकलौती पुत्री को सम्बोधित करते हुए कहते हैं, अही दुलारि, तुम्हारी माँ कहाँ है.? कहो न कि अब जल्दी से स्नान करके चली आएं। भाई, देरी करने से भला क्या होगा? इस संसार के भोग-विलास आदि को व्यर्थ समझें। यहाँ पल-पल नाना प्रकार का भय, कष्ट आदि का आगमन होता रहता है। अगर माता-पिता को सद्गति मिल जाये तो उसके कुल और परिवार के लोगों को अनुपम सुख मिलना चाहिए। क्या तुम्हारी माँ नहीं जानती हैं जो आज जति पवित्र कार्तिक युक्त त्रयोदशी तिथि है। अब मेरे जीवन का अन्त निश्चित है।" इस तरह से गंगा के प्रति महाकवि ने अपनी अटूट श्रद्धा दिखाया। और इसके बाद ही उन्होंने जीवन का अन्तिम सांस इच्छानुसार गंगा के किनारे लिया।
नगेन्द्रनाथ गुप्त सन् १४४० ई. को महाकवि की मृत्यु तिथि का वर्ष मानते हैं। म.म. उमेश मिश्र के अनुसार सन् १४६६ ई. के बाद तक भी विद्यापति जीवित थे। डॉ. सुभद्र झा का मानना है कि "विश्वस्त अभिलेखों के आधार पर हम यह कहने की स्थिति में है कि हमारे कवि का मसय १३५२ ई. और १४४८ ई. के मध्य का है। सन् १४४८ ई. के बाद के व्यक्तियों के साथ जो विद्यापति की समसामयिकता को जोड़ दिया जाता है वह सर्वथा भ्रामक हैं।" डॉ. विमानबिहारी मजुमदार सन् १४६० ई. के बाद ही महाकवि का विरोधाकाल मानते हैं। डॉ. शिवप्रसाद सिंह विद्यापति का मृत्युकाल १४४७ मानते है।
महाकवि विद्यापति ठाकुर के पारिवारिक जीवन का कोई स्वलिखित प्रमाण नहीं है, किन्तु मिथिला के उतेढ़पोथी से ज्ञात होता है कि इनके दो विवाह हुए थे। प्रथम पत्नी से नरपति और हरपति नामक दो पुत्र हुए थे और दूसरी पत्नी से एक पुत्र वाचस्पति ठाकुर तथा एक पुत्री का जन्म हुआ था। संभवत: महाकवि की यही पुत्री 'दुल्लहि' नाम की थी जिसे मृत्युकाल में रचित एक गीत में महाकवि अमर कर गये हैं।
कालान्तर में विद्यापति के वंशज किसी कारणवश (शायद यादवों एवं मुसलमानों के उपद्रव से तंग आकर) विसपी को त्यागकर सदा के लिए सौराठ गाँव (मधुबनी जिला में स्थित समागाछी के लिए प्रसिद्ध गाँ) आकर बस गए। आज महाकवि के सभी वंशज इसी गाँव में निवास करते हैं।


मेरे साथ थोडा हंस लें हां हां हां हां हां ................!!!!!!


संता बैंक गया,वँहा लिखा था सोने पर लोन मिलता है !
संता वहीँ सो गया और पूछा १ रात सोने पर कितना
लोन मिलेगा !

विवाह पंचमी 29/11/2011





धुनषाको जनकपुरमा राम जानकी विवाह महोत्सव आज भब्यताका साथ मनाईदै छ । त्रेता युगमा भगवान श्रीराम र जगतजननी सीताको विवाह भएको उत्सवलाई स्मरण गर्दै मंसिर शुक्ल पञ्चमी तिथिका दिन आज ऐतिहासिक धार्मिक नगर जनकपुरधाममा श्रीरामजानकी विवाह महोत्सव गरिन्छ । बिबाह पंचमी महोत्सवको आज तेसा्रे दिन प्रसिद जानकी मन्दिर, राम मंदिर, दशरथ मंदिर सहितका मंदिरहरुमा पुजापाठ गर्न श्रद्धालु भक्तजनहरुको विहानै देखि भिड लागेको छ ।

श्रद्धालुहरुले जनकपुरका गंगासागर, धनुषसागर, अरगजा पोखरी सहितका जलासयहरुमा स्नान गरी जानकी मन्दिर, राम मन्दिर, लक्ष्मण मन्दिर र दशरथ मन्दिरमा पुजापाठ गरिरहेका छन् ।आज जानकी मन्दिरवाट गाजावाजाका साथ किशोरी जीको र रामजीको डोला नगर परिक्रमा गरि रंगभुमि मैदानमा सिता स्वंयमवर कार्यक्रमको आयोजना गरिन्छ । वेलुका जानकी मन्दिरमा वैदिक परम्परा अनुसार राम र सिता विच वैवाहिक कार्यक्रम सम्पन्न हुनेछ । विवाह पञ्चमी महोत्सवमा सहभागी हुन नेपालका विभिन्न भागका साथै भारतका अयोध्या, वृन्दावन, मथुरा, कलकता, विहार, उतरप्रदेश, राजस्थान सहित विभिन्न स्थानहरुवाट हजारौको संख्यामा श्रद्धालुहरु जनकपुर आएका छन् !

जो कुछ भी तू करता है

जो कुछ भी तू करता है,
उसे भगवान के अर्पण 
  करता चल !   
ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त  
का आनंद अनुभव करेगा  !

गुरु

ललित साह 
                    


लोग जिस मुख से प्रशंसा करते हैं, 
उसी मुख से निंदा भी करते हैं !दुनिया पर बहुत ज्यादा 
भरोसा नहीं करना ! दुनिया बहुत दोगली हैं !
वह कब,किस ओर लुढक जाय पता नहीं ! गुरु  जो रास्ता दिखा दे, बस उसी पर चलना ! वह सुई कभी नहीं खोती जिसमें  धागा होता है !वह शिष्य  कभी नहीं भटकता जिसके जीवन में गुरु होता है !

तेरी यादों को भुला दूं कैसे

 ज़िन्दगी में तेरी यादों को भुला दूं कैसे,
रात बाकि है चिरागों को बुझा  दूं कैसे,

किस तरह दील में तेरे अपनी तम्मना रख दूं,
ख्वाब अपने तेरी आँखों में सजा दूं कैसे,

आज भी जिन से तेरे लम्स की खुसबू आये,
उन्न खतों को तेरे कहने से जला दूं कैसे,

दिल का हर नक्श है पत्थर की लकीरों जैसा,
अब मिटाना चाहूँ तो मिटा दूं कैसे,

वो मेरे पास है मैं फिर भी हु तनहा-तनहा,
किसी तस्बीर को इन्सान बना दूं कैसे
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