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गुरु

ललित साह 
                    


लोग जिस मुख से प्रशंसा करते हैं, 
उसी मुख से निंदा भी करते हैं !दुनिया पर बहुत ज्यादा 
भरोसा नहीं करना ! दुनिया बहुत दोगली हैं !
वह कब,किस ओर लुढक जाय पता नहीं ! गुरु  जो रास्ता दिखा दे, बस उसी पर चलना ! वह सुई कभी नहीं खोती जिसमें  धागा होता है !वह शिष्य  कभी नहीं भटकता जिसके जीवन में गुरु होता है !

तेरी यादों को भुला दूं कैसे

 ज़िन्दगी में तेरी यादों को भुला दूं कैसे,
रात बाकि है चिरागों को बुझा  दूं कैसे,

किस तरह दील में तेरे अपनी तम्मना रख दूं,
ख्वाब अपने तेरी आँखों में सजा दूं कैसे,

आज भी जिन से तेरे लम्स की खुसबू आये,
उन्न खतों को तेरे कहने से जला दूं कैसे,

दिल का हर नक्श है पत्थर की लकीरों जैसा,
अब मिटाना चाहूँ तो मिटा दूं कैसे,

वो मेरे पास है मैं फिर भी हु तनहा-तनहा,
किसी तस्बीर को इन्सान बना दूं कैसे
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