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अगर तलाश करूँ तो कोई मिल ही जायेगा


अगर तलाश करूँ तो कोई मिल ही जायेगा,मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा,
तुम्हे ज़रूर कोई चाहतो से देखेगा,
मगर वो आखें हमारे कहा से लायेगा,
नजाने कब तीरे दिल पर नयी सी दस्तक हो,
मकान खाली हुवा है !तो कोई आएगा ही,
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ,
अगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा,
तुम्हारे साथ ये मौसम फरिस्तों जैसा है,
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सताएगा..........!!


©ललित साह 

हर एक शाम आती है,

हर एक शाम आती है, 
तेरी यादों की घटायें 
और हर रात बरसती है,
मेरे तन्हाई में,
मेरे महबूब में जी नहीं सकता तेरे बगैर ,
जहर ही जहर भरा है सनम तेरी जुदाई में.....!!


© ललित साह 

कुछ सोचू तो तेरा ख्याल आ जाता है



                                             


कुछ सोचू तो तेरा ख्याल आ जाता है,
कुछ बोलू वो तेरा नाम आ जाता है ,
कब तक छुपाऊ दिल की बात,
उसकी हर अदा पर हमको प्यार आ जाता है....!!






लाखों ज़ख्म खाए हम ने,


लाखों ज़ख्म खाए हम ने,
अफ़सोस उन्हें हम पर ऐतबार नहीं है,
क्या गुज़रते है दिल पे,
जब तुम कहती हो तुमसे प्यार नहीं है,

जिन्दगी में हम ने कभी कुछ चाहा ही नहि,
जिसे चाहा उसे कभि पाया हि नहि,
जिसे पाया उसे यूहीॅ खो दिया हम ने,
जैसे जिन्दगी मे कभि कोइ आया हि नहि

अब उसकि चाहत में ये नौबत आ गये है कि,
ठनढि हवा भि हमे जला कर चले गया,
कहती है आप यहाँ तडपते हि रेह गये,
मैं तुमहारे सनम को छु कर भि आ गया,

किस कि यादों ने पागल बना रखा है,
कहीं मर ना जाउं मै कफ़न सिला रखा हुं,
जलाने से पहले दिल निकाल लेना,
कहीं वो ना जल जायें जो दिल में छुपा रखा था,

आखों में आंसु आ जाते हैं,
फिर भि लबों पर हंसि रखना परता है,
ये मोहबब्त भि क्या चिज़ है यारों,
जिस से करों उसि से छुपाना पडता हैं,
 

चन्द्र ग्रहण 10/December/2011

इस वर्ष गत 15 जून 2011 को हुआ पूर्ण चन्द्र ग्रहण भी सम्पूर्ण भारत ,नेपाल ,बांग्लादेश,पाकिस्तान में नजर आया था तथा आज  शनिवार को होने वाला वर्ष का अंतिम चन्द्र ग्रहण भी पूरे भारत,नेपाल ,बांग्लादेश,पाकिस्तान  और पूर्व ,पच्छिम देशो में  भी  दिखाई देगा ।  यह ग्रहण भारतीय समयानुसार 6 बजकर 15 मिनिट चार सेंकण्ड पर प्रारंभ होकर आठ बजकर एक मिनिट आठ सेंकण्ड तक रहेगा और नौ बजकर 48 मिनिट तीन सेंकण्ड पर समाप्त होगा।

एक सबब प्यार का





एक सबब प्यार का, कुछ तो है बात ये,
हो ही जाती है क्यों बात बिन बात के ,
अपनी यादों को रख दर किनारे कहीं,
आ ही जाती है याद ये बिन बात के 

हमने देखा है जो उम्र के मोड़ पर,
हैं खडे वो छितिज़ की तरह याद मैं,
जाने गुम हैं कहीं,कहीं मशगूल है,
उनको आवाज दी ,बोलते ही नहीं.

ऐसे दुनिया मैं रिश्ते हैं बनते मगर,
प्यार ऐसा है जो ,बात होती जुदा,
उसकी यादें है तनहा समा साथ मैं,
सूख जाती हैं आँखें फुहारों के साथ मैं.

अब तो ऐसे हैं वो, एक शिला जैसी है,
कितने दिन के शगूफे जेहन मैं पडे,
कब तलक आग दबके रहे उनमें यूँ,
देखते हैं उन्हें जलते अनल की तरह.

इसलिए बारिशों से तवारुफ़ करें,
उसकी बूंदों से जलने की आदत जो है,
भाप बनकर उडी उसके तन से छुई,
आग बूंदों की माफिक चमक सी गयी !!

पति &पतनी

पति ऑफिस जा रहा था।
पत्नी प्यार से बोली- सी यू इन द इवनिंग
पति (गुस्से से)- धमकी किसे दे रही है, मैं भी तुझे देख लूंगा।

संता & बंता


बंता (संता से)- अगर आपको गर्मी लगती है तो क्या करते हो?
संता  - ए.सी के पास बैठ जाता हूं।
बंता- अगर फिर भी गर्मी लगे तो?
संता- तो एसी ऑन कर देता हूं.!

जो तेरा बुरा करता है !


वो समझे ना समझे

वो समझे ना समझे हमारे जजबात को
हम मानेगे उसकी हर बात को
हम चले जायेंगे एक दिन 
 इस दुनिया को छोड़ कर,
वो आंसू से रोयेंगे हर रात को ! 

घर व मन्दिर में अंतर


घर व मन्दिर में अंतर

हर मनुष्य स्वंय को धार्मिक मानता है ! सच तो यह है की धर्म को तो हर कोई मानता है , परन्तु धर्म की कोई नहीं मानता है कोई मुझसे पूछता है की घर व मंदिर में क्या अंतर है ? मैं कहता हूँ घर में रहती हैं भगवान की बनाई हुई मूर्तियाँ और मंदिर में रहती है , न हिलती हैं,  न  डुलती है, इनसान की बनाई हुई मूर्तियाँ ! फिर भी आदमी समझ नहीं पाता है , खुद को कहता है  धार्मिक और अपनी मूर्तियों को बचाने के लिए मिटाता है भगवान की बनाई हुई मूर्तियाँ !!

वर्क इन लन्दन


 भिजिटर भिषा बाहेकका लागि बेलायतले डिसेम्वर १२ तारिखदेखि अनिवार्इ रुपमा भिसा आवेदन तथा अन्तरवार्ताका लागि समय लिन अनलाईन ब्यवस्था गरेको छ ।
सोमबार काठमाडौंस्थित बेलायती दूतावासले जारी गरेको बिज्ञप्ति अनुसार यो ब्यवस्था हालका लागि टाइर १, टाइर २, टाइर ३ र टाइर ४ का लागि हो । टाइर १ उच्च दक्षता भएका कमदार, ब्यवसायी, लगानीकर्तालगायतका लागि होभने टाइर २ दक्ष कामदारको लागि हो । त्यसैगरी टायर ३ विद्यार्थीका लागि र टाइर ५ अस्थायी कामदारका लागि हो ।
तोकिएको समयपछि बेलायती बोर्टर एजेन्सीले हातले भरेको आवेदन नलिनेसेत उल्लेख गरेको छ ।
यसले आवेदक र भिजा केन्द्रहरुको समयको बचत हुनुका साथै जानकारीहरु लिन र अभिलेखमा राख्न सजिलो हुने बताइएको छ । यसअघि अमेरिकी भिषाका लागि अनलाईन आवेदनको ब्यवस्था रहेको छ ।
'बेलायती बोर्डर एजेन्सी र उसका भीएफएस छरितो सेवा दिनका लागि प्रतिबद्ध छौं र हामी हाम्रा प्रकृयाहरुलाई यिकुराहरु दिमागमा राखेर परिवर्तन गर्ने छौं । यही सन्दर्भमा अनलाईन भिषा आवेदनले समयको बचत गर्नेछ । हाललाई केही आवेदनकले मात्र यो सेवा लिन सक्नेछभन् तर विस्तारै सबैका लागि यो लागु हुनेछ'  एजेन्सीका निर्देशक थोमस ग्रिगले भनेका छन् ।
आवेदनका लागि निम्न वेवसाइटमा जानु पर्ने हुन्छ:

अब नहीं रहे देव आनन्द जी

     


सदाबहार फिल्म अभिनेता देव आनंद ने हिंदी फिल्म जगत में 1951 की 'बाजी' से लेकर 2011 की 'चार्जशीट' तक छह दशकों का लम्बा सफर तय किया। उम्र को पीछे छोड़ देने वाले देव आनंद ने हिंदी सिनेमा को श्वेत-श्याम युग से तकनीकी रंगीन युग में परिवर्तित होते देखा, और अपने पीछे एक ऐसी अनोखी विरासत छोड़ी जो सिनेमाई कार्यो से कही आगे निकल चुकी है।

देव आनंद ने अपनी हालिया रिलीज फिल्म 'चार्जशीट' तक अभिनय, निर्देशन, निर्माण सब कुछ किया.. और उस समय वह 88 के हो चुके थे और हमेशा की तरह सक्रिय थे। 

देव आनंद ने सौम्य, सज्जन व्यक्ति के चरित्र को परदे पर चरितार्थ किया, और नलिनी जयवंत से लेकर जीनत अमान तक, कई पीढ़ी की अभिनेत्रियों के साथ रोमांटिक भूमिका निभाई।

देव आनंद ने 'मुनीमजी', 'सीआईडी' और 'हम दोनों' जैसी फिल्मों के जरिए श्वेत-श्याम युग पर राज किया और उसके बाद 'ज्यूल थीफ' और 'जॉनी मेरा नाम' जैसी क्लासिक फिल्मों के साथ रंगीन युग में प्रवेश किया। उन्होंने जीनत और टीना मुनीम जैसी कई मशहूर अभिनेत्रियों के करियर को शुरुआती आधार मुहैया कराया।  

जीवन की अंतिम सांस तक अपनी फिल्मी परियोजनाओं के साथ सक्रिय रहे देव आनंद बॉलीवुड के वास्तविक पीटर पैन (सदाबहार) थे। उन्होंने अपने गीत "मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया" के दर्शन को सचमुच अपने जीवन में उतारा।

देव आनंद ने 110 से अधिक फिल्मों में नायक की भूमिका निभाई। 2011 में आई उनकी फिल्म 'चार्जशीट' उनकी अंतिम फिल्म साबित हुई। इस फिल्म को उन्होंने निर्देशित किया था और इसमें अभिनय भी किया था। देव आनंद की आत्मकथा 'रोमांसिंग विद लाइफ' सितम्बर 2007 में जारी हुई थी। 

देव आनंद ने 26 सितम्बर, 1923 को धरम देव पिशोरीमल आनंद के रूप में तत्कालीन अविभाजित पंजाब के गुरदासपुर जिले में एक वकील पिता के घर में जन्म लिया था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर (फिलहाल पाकिस्तान में) से स्नातक की डिग्री हासिल की थी। उसके बाद वह स्वप्न नगरी मुम्बई आ गए, जहां उनके बड़े भाई दिवंगत फिल्मकार चेतन आनंद पहले से अपने अभिनय के सपने को पूरा करने के लिए जमीन तलाश रहे थे।

अन्य लोगों की तरह देव आनंद ने भी सफलता से पहले काफी संघर्ष किया। उन्होंने 160 रुपये के वेतन पर चर्चगेट में एक सैन्य सेंसर कार्यालय में काम किया, और अपने भाई चेतन के साथ भारतीय जन नाट्य मंच (इप्टा) से भी जुड़ गए। 

भाग्य ने साथ दिया और जल्द ही उन्हें प्रभात टाकीज की तरफ से 'हम एक हैं' (1946) में एक अभिनेता के रूप में काम करने का प्रस्ताव मिला। पुणे में फिल्म की शूटिंग के दौरान देव आनंद की मुलाकात गुरु दत्त से हुई, और वहीं दोनों की मित्रता हो गई।

देव आनंद के करियर में दो वर्षों बाद महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब अशोक कुमार ने बाम्बे टाकीज की हिट फिल्म 'जिद्दी' (1948) में काम करने का बड़ा मौका दिया। इस फिल्म के बाद अशोक कुमार देव आनंद को लगातार फिल्मों में हीरो बनाते रहे। 

देव आनंद ने 1949 में खुद की निर्माण कम्पनी, नवकेतन की शुरुआत की। पूर्व के वादे के मुताबिक उन्होंने अपने बैनर की पहली फिल्म 'बाजी' (1951) के निर्देशन के लिए गुरु दत्त से कहा। इस फिल्म ने देव आनंद को रातों रात स्टार बना दिया, और वह जीवन के अंतिम सांस तक, छह दशकों बाद भी स्टार बने रहे।

देव आनंद वैसे तो हर लड़की के सपनों के राजकुमार हुआ करते थे, लेकिन वह उस जमाने की सुपर स्टार सुरैया पर फिदा हो गए। दोनों के बीच लम्बे समय तक रोमांस चला, लेकिन इस रिश्ते का तब त्रासदपूर्ण अंत हो गया, जब सुरैया की नानी ने इस रिश्ते को मंजूरी नहीं दी और दोनों को मजबूरन जुदा होना पड़ा।

बाद में देव आनंद ने एक अन्य नायिका कल्पना कार्तिक से शादी की। 

देव आनंद को हिंदी सिनेमा में योगदान के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। जीवन के प्रति उनकी दिलचस्पी हमेशा याद की जाएगी। उनके परिवार में पत्नी, एक पुत्र और एक पुत्री है।
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