हर मनुष्य स्वंय को धार्मिक मानता है ! सच तो यह है की धर्म को तो हर कोई मानता है , परन्तु धर्म की कोई नहीं मानता है कोई मुझसे पूछता है की घर व मंदिर में क्या अंतर है ? मैं कहता हूँ घर में रहती हैं भगवान की बनाई हुई मूर्तियाँ और मंदिर में रहती है , न हिलती हैं, न डुलती है, इनसान की बनाई हुई मूर्तियाँ ! फिर भी आदमी समझ नहीं पाता है , खुद को कहता है धार्मिक और अपनी मूर्तियों को बचाने के लिए मिटाता है भगवान की बनाई हुई मूर्तियाँ !!