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अब नहीं रहे देव आनन्द जी

     


सदाबहार फिल्म अभिनेता देव आनंद ने हिंदी फिल्म जगत में 1951 की 'बाजी' से लेकर 2011 की 'चार्जशीट' तक छह दशकों का लम्बा सफर तय किया। उम्र को पीछे छोड़ देने वाले देव आनंद ने हिंदी सिनेमा को श्वेत-श्याम युग से तकनीकी रंगीन युग में परिवर्तित होते देखा, और अपने पीछे एक ऐसी अनोखी विरासत छोड़ी जो सिनेमाई कार्यो से कही आगे निकल चुकी है।

देव आनंद ने अपनी हालिया रिलीज फिल्म 'चार्जशीट' तक अभिनय, निर्देशन, निर्माण सब कुछ किया.. और उस समय वह 88 के हो चुके थे और हमेशा की तरह सक्रिय थे। 

देव आनंद ने सौम्य, सज्जन व्यक्ति के चरित्र को परदे पर चरितार्थ किया, और नलिनी जयवंत से लेकर जीनत अमान तक, कई पीढ़ी की अभिनेत्रियों के साथ रोमांटिक भूमिका निभाई।

देव आनंद ने 'मुनीमजी', 'सीआईडी' और 'हम दोनों' जैसी फिल्मों के जरिए श्वेत-श्याम युग पर राज किया और उसके बाद 'ज्यूल थीफ' और 'जॉनी मेरा नाम' जैसी क्लासिक फिल्मों के साथ रंगीन युग में प्रवेश किया। उन्होंने जीनत और टीना मुनीम जैसी कई मशहूर अभिनेत्रियों के करियर को शुरुआती आधार मुहैया कराया।  

जीवन की अंतिम सांस तक अपनी फिल्मी परियोजनाओं के साथ सक्रिय रहे देव आनंद बॉलीवुड के वास्तविक पीटर पैन (सदाबहार) थे। उन्होंने अपने गीत "मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया" के दर्शन को सचमुच अपने जीवन में उतारा।

देव आनंद ने 110 से अधिक फिल्मों में नायक की भूमिका निभाई। 2011 में आई उनकी फिल्म 'चार्जशीट' उनकी अंतिम फिल्म साबित हुई। इस फिल्म को उन्होंने निर्देशित किया था और इसमें अभिनय भी किया था। देव आनंद की आत्मकथा 'रोमांसिंग विद लाइफ' सितम्बर 2007 में जारी हुई थी। 

देव आनंद ने 26 सितम्बर, 1923 को धरम देव पिशोरीमल आनंद के रूप में तत्कालीन अविभाजित पंजाब के गुरदासपुर जिले में एक वकील पिता के घर में जन्म लिया था। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर (फिलहाल पाकिस्तान में) से स्नातक की डिग्री हासिल की थी। उसके बाद वह स्वप्न नगरी मुम्बई आ गए, जहां उनके बड़े भाई दिवंगत फिल्मकार चेतन आनंद पहले से अपने अभिनय के सपने को पूरा करने के लिए जमीन तलाश रहे थे।

अन्य लोगों की तरह देव आनंद ने भी सफलता से पहले काफी संघर्ष किया। उन्होंने 160 रुपये के वेतन पर चर्चगेट में एक सैन्य सेंसर कार्यालय में काम किया, और अपने भाई चेतन के साथ भारतीय जन नाट्य मंच (इप्टा) से भी जुड़ गए। 

भाग्य ने साथ दिया और जल्द ही उन्हें प्रभात टाकीज की तरफ से 'हम एक हैं' (1946) में एक अभिनेता के रूप में काम करने का प्रस्ताव मिला। पुणे में फिल्म की शूटिंग के दौरान देव आनंद की मुलाकात गुरु दत्त से हुई, और वहीं दोनों की मित्रता हो गई।

देव आनंद के करियर में दो वर्षों बाद महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब अशोक कुमार ने बाम्बे टाकीज की हिट फिल्म 'जिद्दी' (1948) में काम करने का बड़ा मौका दिया। इस फिल्म के बाद अशोक कुमार देव आनंद को लगातार फिल्मों में हीरो बनाते रहे। 

देव आनंद ने 1949 में खुद की निर्माण कम्पनी, नवकेतन की शुरुआत की। पूर्व के वादे के मुताबिक उन्होंने अपने बैनर की पहली फिल्म 'बाजी' (1951) के निर्देशन के लिए गुरु दत्त से कहा। इस फिल्म ने देव आनंद को रातों रात स्टार बना दिया, और वह जीवन के अंतिम सांस तक, छह दशकों बाद भी स्टार बने रहे।

देव आनंद वैसे तो हर लड़की के सपनों के राजकुमार हुआ करते थे, लेकिन वह उस जमाने की सुपर स्टार सुरैया पर फिदा हो गए। दोनों के बीच लम्बे समय तक रोमांस चला, लेकिन इस रिश्ते का तब त्रासदपूर्ण अंत हो गया, जब सुरैया की नानी ने इस रिश्ते को मंजूरी नहीं दी और दोनों को मजबूरन जुदा होना पड़ा।

बाद में देव आनंद ने एक अन्य नायिका कल्पना कार्तिक से शादी की। 

देव आनंद को हिंदी सिनेमा में योगदान के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार और पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। जीवन के प्रति उनकी दिलचस्पी हमेशा याद की जाएगी। उनके परिवार में पत्नी, एक पुत्र और एक पुत्री है।
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