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कभी आशूं कभी खुसबू (kabhi aashon kabhi khushboo )
कभी आशूं कभी खुसबू कभी नग्मा बनकर
हमसे हर शाम मिली है तेरा चेहरा बनकर
चाँद निकला है तेरी आँखों के आशूं की तरह,
फूल महके हैं तेरी ज़ुल्फ़ का साया बनकर..
मेरी जगी हुई रातों को उसी की है तलाश,
सो रहा है मेरी आँखों में जो सपना बनकर,
दिल के कागज पर उतरा है जो शेरों की तरह
मेरे होटों पे मचलता है जो नग्मा बनकर.....
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