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क्या हुआ गर हम अकेले हैं खुदा का साथ तो है(kya huwa gar hum akele hai to )

क्या हुआ गर हम अकेले हैं खुदा का साथ तो है,
क्या हुआ गर हम अकेले हैं माँ की दुआ का साथ तो है |
चेतना बन दौड़ता जो रक्त अपनी शिराओं में,
उस पिता की उँगलिओं के स्पर्श का अहसास तो है ।

साथ में है सरज़मीं, आबोहवा भी साथ तो है,
साथ में हैं अग्नि-जल, आसमां भी साथ तो है |
साथ में सूरज भी है ,साथ में है चाँद, तारे,
पंच तत्व से यह निर्मित साँसों का वरदान तो है ।

साथ हैं वैदिक रिचाएँ, साथ पूजा- अर्चनाएँ,
नौ-शक्ति की पूजा करें अरु दीप गंगा में बहाएँ |
शव-शिवं के द्वंद्व से सत्य का परिचय कराएँ,
दिग-दिगन्त में प्रतिध्वनित जो प्रेम का प्रतिभास तो है।

आज दिल की हर बात कही तो तेरा ज़िक्र आया (aaj dil ki har baat kahi to tera jikr aaya )

आज दिल की हर बात कही तो तेरा ज़िक्र आया 
गुजरी मोहोब्बत का हर लम्हा याद आया 

हुई मुददत आज तक मुझमे कुछ नहीं बदला,
मेरे ख्याल में तेरी अदाओं पर नया रंग आया..

तेरी यादों की आहट को बटोरने मे जुटा हूँ..
बस तेरा करम है एह जो खुद को ना साम्झापाया....

''ललित" जिंदगी में अब और क्या रखा,
एक ख्याल तक न उसको तेरा आया ....

जी रहा हूँ बस इसी सोच में डूब कर ,
वादा किया था उसने,फिर क्योँ नहीं आयी......

आज दिल की हर बात कही तो तेरा ज़िक्र आया,
गुजरी मोहब्बत का हर लम्हा याद आया .......

थाम के हाथ मेरा जिन्दगी भर साथ चले (tham ke haath mere zindagi bhar saath chale)

थाम के हाथ मेरा जिन्दगी भर साथ चले,
जैसे चाँद के संग चांदनी हर रात चले !
लगे हर रोज सुबह मुझको वो पगली सी,
बने जो मेरी दीवानी हर शाम ढले !

करे मुझ से ही शिकायत मेरी शेतानी पे,
रूठे खुद से खुद की नादानी पे !
हँस के करदे रोशन मेरे दिल का हर कोना,
रहे बेचेन मेरी एक परेशानी पे !
काटू जिंदगी उसकी पलको के तले !

थाम के हाथ मेरा जिन्दगी भर साथ चले !

रो देता हूँ अब महफिलों में अक्सर (Ro deta hoon ab mehphilon mein akshar)

मुझसे शायद कोई खता सी हो गई है,
खुशियाँ मेरी मुझसे खफा सी हो गई है।

जज़्बात भी साथ देते नहीं आज कल,
क्या ख़बर बहुत बड़ी भूल सी हो गई है।

रो देता हूँ अब महफिलों में भी अक्सर,
गम में डूब जाने की आदत सी हो गई है।

झूठे वादे ही मिले है अब तक मुझे,
हकीक़त तो ग़लत फ़हमी सी हो गई है।

दिलासे भी मिले मुफ्त में कई मुझे,
दुआ भी सब दिखावे सी हो गई है।

कोई रिश्ता न रहा यहाँ अब रिश्तों में,
साथ निभाने की बात बेमानी सी हो गई है।

मौत मिलती भी है तो यहाँ किश्तों में,
ज़िन्दगी किसी 'हादसे' की निशानी सी हो गई है।
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