मुझसे शायद कोई खता सी हो गई है,
खुशियाँ मेरी मुझसे खफा सी हो गई है।
जज़्बात भी साथ देते नहीं आज कल,
क्या ख़बर बहुत बड़ी भूल सी हो गई है।
रो देता हूँ अब महफिलों में भी अक्सर,
गम में डूब जाने की आदत सी हो गई है।
झूठे वादे ही मिले है अब तक मुझे,
हकीक़त तो ग़लत फ़हमी सी हो गई है।
दिलासे भी मिले मुफ्त में कई मुझे,
दुआ भी सब दिखावे सी हो गई है।
कोई रिश्ता न रहा यहाँ अब रिश्तों में,
साथ निभाने की बात बेमानी सी हो गई है।
मौत मिलती भी है तो यहाँ किश्तों में,
ज़िन्दगी किसी 'हादसे' की निशानी सी हो गई है।