ये घर और गांव का संस्कार ही था कि विद्यार्थी जीवन में हमारे लिए मां सरस्वती से बड़ी कोई देवी नहीं थी। किताब ही नहीं किसी कागज पर भी पैर पड़ जाए तो तुरंत हम उसे प्रणाम करते थे। तब हमारे विद्या कसम से बढ़कर कोई कसम नहीं हुआ करती थी। ये और बात है कि आज विद्या का मतलब विद्या बालन हो गई हैं। हम अपने घरों और स्कूलों में सरस्वती पूजा की तैयारी हफ्ते भर पहले ही शुरू कर देते थे। जहां मां सरस्वती की तस्वीर रखते थे। पूजा के जोश में जनवरी के जाड़े की परवाह नहीं होती और सुबह से ही नहा धोकर पूजा पर बैठ जाते थे क्योंकि घर की पूजा में लेट होने का मतलब था स्कूल जाने में लेट क्योंकि बड़ा आयोजन तो स्कूल में होता था !!!