वो भी क्या दिन थे .....
ममी की गोद और पापा के कंधे,
ना पढाई की सोच, ना लाइफ के फंडे
ना काल की चिंता, ना फ्यूचर के सपने,
अब तो काल ही है फिकर, और अधूरे है सपने
मुर कर देखा तो बहुत दूर है अपने,
मंजिलों को ढूंढते हम कहा खो गए
क्या हम इतना जल्दी बड़े हो गये........
© ललित साह