अनदेखा अनजाना बच्पन
याद् मुझे जब आता है,
कुछ पल मुझे हसां ता है
पर हर पल मुझे रुलाता है,
छोटे छोटे बातें कुछ
धुंधले धुंधले यादें कुछ,
रोना धोना रूठ भि जाना
मौसमियत से सब को मनाना,
घर का आँगन और चौबारा
अक्सर ख्वाबों में मंडराता है,
दादा दादी और नाना नानी
रोज सुनाये एक नई कहानी,
नन्हा मुन्हा प्यारा प्यारा
सब का था मैं राज़ दुलारा,
अबू का था मैं आखं का तारा
अमी का मैं जिगर का टुकरा,
बच्पन गुजरा आया लड़कपन
हल्ला गुल्ला मस्ति हर दम,
मालूम नहीं कब बीता बच्पन
पलक झपकते आई जवानी,
करने लगा अपनी मनमानी
चलते बैठते वो घड़ी भि आई,
घर वालों ने मेरी सादी भि रचायी,
हिस्सें में मेरी एक जिमेदारी आयी,
वक्त बदल्ते देर लगी ना
मेरी गोद में एक बच्ची आयी,
ढूंढ रहा हूँ हर पल हर अर्स
उसमें पाया अब बच्चपन अपना,
लौट के आया फिर से बच्पन मेरा......