ललित साह
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चाँद से की थी गुजारिश हमने (chand se ki thi gujaarish hamne)
चाँद से की थी गुजारिश हमने,
मेरे चाँद से कर मुलाक़ात कभी,
चाँद भी मुस्कुराकर ढल गया,
कहा मत कर मुझे सर्मिन्दा अभी,
तेरा चाँद को देख कर फिर ना मैं कभी चमक पाउँगा,
रौशनी तेरे चाँद की है कुछ अलग, शायद मैं खो जाऊंगा.........
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