ललित साह
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रख दूँ तुम्हारे पहलू में
कई बार यूँ भी हुआ है कि
बेतरतीब से लफ्जों को समेट कर
तुम्हारे पहलू में रख दिया है मैंने
और पाई है
एक मुक़म्मल नज़्म
काश यूँ भी हो कि
एक बार
खुद को समेटकर
रख दूँ तुम्हारे पहलू में...
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