होठों से लगाकर पीना, बात कुछ पुरानी हो गई
आँखों से पिला कर देख, आज रुत मस्तानी हो गई
वोह पीते है शराब महेफिल-ऐ-यार जमा कर
हमने चोरी से पिया एक जाम तो बेइमानी हो गई
युंह तो करते है वो हरदम कुछ नई शरारत
हम जो एक बार उनसे रूठे तो नादानी हो गई
वोह करते है इज़हार-ऐ-प्यार इस कदर जहाँ मैं
हमे पता भी न चला और एक कहानी हो गई
उन के खयालो से महेकता है हर-रोज़ यह समां,
पास आने से आज उनके “ग़ज़ल” रूमानी हो गई...